Saturday, January 2, 2010

बेचारा एक ख्वाब

लो अब मन में एक और ख्वाब मचलने लगा है,
इतना बड़ा हो गया है की अब तंग करने लगा है।

न कुछ सोचता है और न समझता है....
बच्चों सा जिद करता है।

हम जानते है की कुछ ख्वाब पूरे नहीं हो सकते,
पर देखो न फिर भी मन भटकता है।

ऐसे ख्वाबो में रहना तो नींद में रहना हुआ,
जैसे किसी चिकनी सतह पर दौड़ना हुआ।

नहीं इसको मरना होगा औरो की तरह,
गला घोंट दूंगा इसका भी...
कुछ देर तडपेगा फर्श पर और सो जायेगा,

और मै फिर खो जाऊंगा अपनी बेरंग दुनिया में.....................